Thursday, December 23, 2021

आगाज़...



 ज़िंदगी मेरी तो बस अभी आगाज़ है,

दूर तक कहीं यह परवाज़ है ।

सुनहरे सपनों की डोर से बंधे ,

हैं कई जंग भी मैंने लड़े ।

मगर अभी भी है कुछ खलिश सी,

और है बाकी जिगर में तपिश सी।

रुकना न अभी मुमकिन है,

मगर पता न मंजिलें कौन सी लेकिन हैं।

फकत इन्ही लम्हों में कुछ जिंदगी वसूल है,

आगे बढ़ते जाना ही तो जिंदगी का उसूल है।

-नूपुर अग्रवाल



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