ज़िंदगी मेरी तो बस अभी आगाज़ है,
दूर तक कहीं यह परवाज़ है ।
सुनहरे सपनों की डोर से बंधे ,
हैं कई जंग भी मैंने लड़े ।
मगर अभी भी है कुछ खलिश सी,
और है बाकी जिगर में तपिश सी।
रुकना न अभी मुमकिन है,
मगर पता न मंजिलें कौन सी लेकिन हैं।
फकत इन्ही लम्हों में कुछ जिंदगी वसूल है,
आगे बढ़ते जाना ही तो जिंदगी का उसूल है।
-नूपुर अग्रवाल
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