एक रोज़ ज़िन्दगी मेरे घर आयी,
पास बैठी , धीरे से यह फुसफुसाई ,
भागते वक़्त से चंद लम्हे चुरा लेना,
अपने बच्चों को वह सौगात में देना ।
उनकी शैतानियां बन जाएगी तुम्हारी जिंदगानी ,
कर लेने देना उन्हें थोड़ी सी मनमानी ।
है ज़िंदगी उनकी जैसे उगते सूरज की भोर,
हो लेने देना उन्हें रिमझिम बारिश में सराबोर।
देना परवाज उनके ख्याबों को,
मचलने देना उनके दिल की उड़ानों को।
आंकना ना उन्हें रूढ़ि समाज के मापदंडों पर,
समेट लेने देना उन्हें खुशियां झोली भर।
छू लेने देना उन्हें आसमान के सितारे,
अगर करने भी पड़ें कुछ रिवाज़ दर किनारे।
रह जाएंगी यही यादें तुम्हारे साथ,
उड़ जायेंगे जब वह घरोंदो के पार।
-नूपुर अग्रवाल
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